Explanation : अद्वैतवाद के सिद्धांत के प्रतिपादक शंकराचार्य थे। शंकराचार्य का अद्वैतवाद वेदांत दर्शन पर आधारित है। इसके अनुसार जीव को दु:ख का अनुभव होता है अत: जीव दु:ख से घृणा करता है और उससे छुटकारा पाने का प्रयत्न करता है। अद्वैतवाद कहता है कि अविद्या ने अनादिकाल से ही आत्मा के स्वरूप को मेघ की तरह आच्छादित कर रखा है। इसी कारण जिज्ञासु को आत्मा का ज्ञान नहीं हो पाता कि उसका स्वरूप कैसा है। शंकराचार्य ने आत्मा को परमात्मा का स्वरूप माना है। अविद्या से आछन्न होने के कारण उसी आत्मा ने जीव नामधारी होकर स्वयं को आत्मा से अलग मान रखा है। इस प्रकार वह अपना ही अस्तित्व मिटा देता है।
शंकराचार्य के अद्वैतवाद की विशेषताएं हैं–
1. शंकराचार्य ने विवेक चूड़ामणि में बताया है कि 'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापर:' अर्थात् ब्रह्म सत्य है, संसार मिथ्या है और जीव ब्रह्म है दूसरा नहीं इसका तात्पर्य है कि अद्वैत दर्शन के अनुसार ब्रह्म ही अद्वैत तत्व है।
2. शंकराचार्य ने अद्वैत दर्शन द्वारा 'अभेद' की प्रतिस्थापना की है। उनके अनुसार भेद मायाकृत और झूठे हैं।
3. अद्वैतवाद के अनुसार माया ब्रह्म का आच्छादन है। मोक्षावस्था में माया नहीं रहती केवल अद्वितीय ब्रह्म ही रहता है।
4. शंकराचार्य के वेदांत में जीव और परमात्मा या ब्रह्म का स्वरूप बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है। उनके अनुसार ब्रह्म ज्ञान होने पर जीवन काल में ही जीव की मुक्ति हो जाती है।
5. शंकराचार्य के अद्वैतवाद के अनुसार 'ब्रह्म' चेतन और आनंदस्वरूप है।
6. ज्ञान के द्वारा ही मुक्ति होती है।
7. अद्वैतवाद के अनुसार अनेकत्व केवल आभास मात्र है, किंतु एकत्व मात्र सत्य है। ....अगला सवाल पढ़े
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Web Title : Advaitvad Ke Siddhant Ke Pratipadak Kaun The