जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Hatyakand) के विरुद्ध बढ़ते जनअसंतोष से भयभीत और कांग्रेस के बार-बार मांग पर सरकार ने लार्ड विलियम हंटर (William Wilson Hunter) की अध्यक्षता में एक जांच आयोग 19 अक्टूबर, 1919 को गठित किया। जिसे हंटर कमेटी के नाम से जाना जाता है। इस 7 सदस्यीय आयोग के चार बिट्रिश सदस्य थे-लार्ड विलियम हंटर (अध्यक्ष), डब्ल्यू. एफ. राइस, सर जॉर्ज बैरो, जी.सी. रैंकिन तथा तीन भारतीय सदस्य-चमनलाल सीतलवाड़, पं. जगत नारायण और सुल्तान अहमद खान थे। इसका सचिव एच सी स्टॉक्स था।
हंटर आयोग ने मार्च 1920 में अपनी रिपोर्ट दी जिसमें संपूर्ण कांड की लीपापोती करने का प्रयत्न किया गया। जनरल डायर पर कोई दंडात्मक कार्यवाही नहीं की गई। केवल उसे नौकरी से निकाल दिया, क्योंकि उसका निर्णय गलत था। रिपोर्ट में जनरल डायर के कार्य को ‘कर्तव्य से सत्यनिष्ठा लेकिन गलत धारणा’ पर आधारित बताया गया। दूसरी तरफ पंजाब के गवर्नर माइकेल डायर को कोई सजा नहीं दी गई। मालवीय समिति कांग्रेस ने भी तथ्यों की जांच करने हेतु एक समिति पं. मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में नियुक्त की जिसे तहकीकात समिति भी कहा जाता है। इसके सदस्यों में पं. मोतीलाल नेहरू, सी आर दास, महात्मा गाँधी, अब्यास तैयबजी, एम. एस. जयकर प्रमुख थे। भारतीय सदस्यों के द्वारा एक पृथक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें जनरल डायर के दुष्कृत्यों की कठोरतम निंदा की गई। मालवीय समिति ने भी डायर के कार्य को ‘अमानवीय और गैर-ब्रिटिश’ माना।
ब्रिटिश लार्ड सभा ने जनरल डायर की प्रशंसा करते हुए उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का शेर’ कहा गया उसे ‘सम्मान की एक तलवार (Sword of Honour) और 20 हजार पौंड की थैली भेंट की गई। दूसरी तरफ आंग्ल भारतीय प्रेस ने उसे ब्रिटिश राज्य का रक्षक कहकर संबोधित किया।