‘ऐश्वर्यमिमिरान्धत्वम्’ यह कथन किस ग्रंथ का है?

(A) शुकनाशोपदेश (कादम्बरी)
(B) नीतिशतक
(C) पच्चतंत्र
(D) मेघदूत

Question Asked : [TGT Exam 2009]

Answer : शुकनाशोपदेश (कादम्बरी)

उपर्युक्त कथन बाणभट्ट प्रणीत कादम्बरी के 'शुकनासोपदेश' प्रकरण से है। 'ऐश्वर्य​तिमिरान्धत्वम्' अर्थात् ऐश्वर्य रूप तिमिर (नामक रोग) से उत्पन्न होने वाला अंधापन, जिनकी चिकित्सा अंजनलिप्त श्लाका से नहीं की जा सकती है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
अशिशिरोपचारहाय्योSतितीव्र: दर्पदाहज्वरोष्मा (संपति के) अभिमान रूप तीव्र ज्वर की गर्मी शीतल उपचारों से दूर करने योग्य नहीं होती है।
सततममूमंत्रशस्य: विषमो विषयविषास्वाद मोह: (ऐन्द्रियिक सुखों) — विषयों रूप का स्वाद लेने से उत्पन्न भयानक अचेतन सदा होती है कि औषधिरूप जड़ी—बूटियों अथवा मंत्रों की उस पर प्रतिक्रिया नहीं होती।
नित्यमस्नानशौचबाध्य: बलवान रागमलावलेप: (विषयों के प्रति) अनुराग रूप मल का अत्यंत लेप नित्य किये जाने वाले स्नान एवं शुद्धि के द्वारा हटाने योग्य नहीं होता।
अजस्त्रमक्षपावसानप्रबोधाघेरा च राज्यसुखसन्निपातनिद्रा भव​ति राज्य सुखों के उपभोग रूपी सन्निपात से प्रेरित घोर निद्रा सदा ऐसी होती है कि रात्रि की समाप्ति पर भी उससे जागा नहीं जा सकता।
Tags : संस्कृत संस्कृत प्रश्नोत्तरी
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Web Title : ऐश्वर्यमिमिरान्धत्वम्