Explanation : 44वां संविधान संशोधन 1978 में हुआ था। इस अधिनियम द्वारा 42वें संविधान संशोधन की आपत्तिजनक बातों को रद्द करने का प्रयास किया गया। लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद राज्यसभा ने इसमें कुछ संशोधन कर पहली बार अपनी शक्ति का प्रभावी उपयोग किया। 44वां संविधान संशोधन द्वारा किए गए महत्वपूर्ण थे–
– लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं के वास्तविक कार्यकाल को पुनःस्थापित कर दिया गया (अर्थात् पुनः 5 वर्ष कर दिया गया।)
– संसद एवं राज्य विधानमंडलों में कोरम की व्यवस्था को पूर्ववत रखा गया।
– संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के संदर्भ को हटा दिया गया।
– संसद एवं राज्य विधानमंडलों की कार्यवाहियों की खबरों को समाचार पत्रों में प्रकाशन को संवैधानिक संरक्षण दिया गया।
– कैबिनेट की सलाह को पुनर्विचार के लिये एक बार लौटाने/ वापस भेजने की राष्ट्रपति को शक्तियाँ दी गई। परंतु पुनर्विचारित सलाह को राष्ट्रपति को मानने के लिये बाध्य कर दिया गया।
– अध्यादेशों को जारी करने के संदर्भ में राष्ट्रपति, राज्यपालों एवं प्रशासकों की अंतिम संतुष्टि वाले उपबंध को समाप्त कर दिया गया।
– सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की कुछ शक्तियों को पुनः बहाल कर दिया गया।
– राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में ‘आंतरिक अशांति’ शब्द के स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द को रखा गया।
– राष्ट्रपति द्वारा कैबिनेट की लिखित सिफारिश के आधार ही राष्ट्रीय आपात की घोषणा करने की व्यवस्था की गई।
– राष्ट्रपति शासन तथा राष्ट्रीय आपातकाल के संदर्भ में कुछ प्रक्रियात्मक सुरक्षा (सेफगार्ड्स) के उपाय किये गये।
– मौलिक अधिकारों की सूची में संपत्ति के अधिकार को समाप्त कर दिया गया तथा उसे केवल एक विधिक अधिकार के रूप में रखा गया।
– अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान निलंबित नहीं किये जा सकने की व्यवस्था की गई।
– उस उपबंध को हटा दिया गया जिसने न्यायपालिका की राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा अध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों पर निर्णय देने की शक्ति छीन ली थी।
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